फूलों के शहर में घुमाता है कोई..
फूलों के शहर में घुमाता है कोई
रह -रह के हाय याद आता है कोई
दिल को लगी मुद्दत भुलाने में जिसको
किस्सा फिर से वही सुनाता है कोई
ये अंधेरे दिलों पे छाए हैं हरसू
दीया हर जगह फिर जलाता है कोई
तस्वीरें ढूँढकर पुरानी सी अब भी
दर-ओ-दीवार दिल की सजाता है कोई
लिखने का दिल पे हुनर हासिल हो जैसे
सबक-ए-मुहब्बत यूँ पढ़ाता है कोई
गुज़री जलते रात शमां की दुनियाँ में
सुबह-सुबह फिर उसे बुझाता है कोई
यूँ इज़्ज़त का मिरी बनाके करेला
मीठी बतियां बहुत बनाता है कोई
—सुरेश सांगवान’सरु’