!! फूलों की व्यथा !!
“फूलों” ने अपनी व्यथा सुनाई
सुन व्यथा मेरी आँखें भर आई
* उन्होने कहा
चिड़ियों को चहकना
फ़िजा को महकना
भौरों को गुनगुनाना
कड़ी धूप में खिलखिलाना
अज़नवीयों से मिलना
कांटों के बीच खिलना
रूठों को मनाना
ग़म में भी मुस्कुराना
ये,हम सिखाते हैं
* फिर भी लोग, हमें तोड़ जाते हैं
हम टूटकर भी
किसी के गले का हार
किसी का मनुहार
बालों का श्रृंगार
प्यार का इज़हार
उत्सव, शादी,सगाई या त्योहार
घरों में खुशियां अपरम्पार
पार्टियों की जान
महफ़िलों की शान
ये,हम बढ़ाते हैं
* फिर भी लोग, हमें पैरों तले कुचल जाते हैं
हम कुचल कर भी
अपनी पहचान छोड़ जाते हैं
हम बिखर कर भी
दो दिलों को जोड़ जाते हैं
हम जुदा होकर भी
औरों की जुदाई तोड़ जाते हैं
हम फ़ना होकर भी
मुहब्बत का पैग़ाम छोड़ जाते हैं
* फिर भी लोग हमें, तोड़ जाते हैं
* काश, कोई मनुष्य हमारी व्यथा को समझ पाता
हमारी खुशियों में चार चांद लगा जाता -“एक फूल”
•••• कलमकार ••••
चुन्नू लाल गुप्ता-मऊ (उ.प्र.)