फूलों का रसपान!
फूलों को देख हृदय में,
प्यारा-सा बंधन जगता है,
स्नेह-रूपी भौंरो में,
आकर्षण का प्रेम बढ़ता है।
देख छवि सुंदर तेरी,
आंँखों में प्यास जगती है,
रसपान करने यौवन के रस को,
भौंरे इर्दगिर्द भन्नाते हैं।
कोमल पंखुड़ी के होठो जैसे,
चेहरे से मुस्कान झलकती है,
देख-देख तेरी चोटी की डाली,
प्रेम रस मन में बहती है।
आंँखों में प्रतिबिंब बसी है,
मोहब्बत में कलियांँ खिली हैं,
बंद पंखुड़ी के अंदर हो जाए,
सांँझ ढले तो प्रेम में कैद हो जाए।
खुशबू से तन मन महक गया अब,
दूर खिलते ही सुगंध तरसाए,
भौंरा मोहित हुआ जाल-साज में,
कैद हुआ है प्रेम रस के रस पान में।
# बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर।