फूले रंजिश के
फिर मकारी बह चली है ये कहा
अब भला ये आसमां कैसे थमा
फूले रंजिश के बिखेरे है किसने
देखनी है अब हमने उनकी सदा
हो चला कैसा गुमान ये तुमको
बस करो तुम हमको न आजमा
झलक तलक भी तुमको लगने न दी
इतने मसरूफ तुम हो गये थे कहा
सच कहूं तो हो गया तुम पर यकीं
भा गई हमको तुम्हारी ये अदा