“फुर्सत “
लिखते हैं रोज हम कुछ न कुछ अपनी व्यथा को ,
लगता है कोई इसे समझेगा कोई सुनेगा ,
पर है कहाँ किसी को फुर्सत ,
जो पढ़ले इन किताबों को ?@डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “
लिखते हैं रोज हम कुछ न कुछ अपनी व्यथा को ,
लगता है कोई इसे समझेगा कोई सुनेगा ,
पर है कहाँ किसी को फुर्सत ,
जो पढ़ले इन किताबों को ?@डॉ लक्ष्मण झा “परिमल “