01-फुट पड़े अश्क मेरे ।
बक़्त से मुलाक़ात हुई तो ,तो फुट पड़े अश्क मेरे ।
आँखों की तारकों को , क्योँ घूमता है शख्श घेरे ।।
सहन करने का बल मुझे ,है दे गया कौन मुझको
वरदुआ ग़र दे मरें हम, फिर मर मिटेंगे इश्क तेरे ।।
अश्थियां मेरी सिमट गई ,दवा काम करतीं नहीं
आवाज दे दे कूदते हैं , यों रात भर चश्क मेरे ।।
कितनी बार आहत हुए हैं,पता भग करके चलेगा
छलकने भी तो आज लगे हैं, भरे हुए कलश मेरे ।।
जरीदारी इतनी हुई ,की जमीं दिल में कहाँ बची है
देख लो पन्ने पलट के ,जवाव दे रहे हैं नख्श मेरे ।।
पाल “साहब”गुनाह कौन ?जो क़िताब में हैं सीं रखे
सजा के क़ाबिल नहीं में,तो माफ़ कर ना बख़श दे रे ।।