” फिर हुए कुर्बान हैं ” !!
हम वतन के नाम पर ,
फिर हुए कुर्बान हैं !!
हम लड़ाई लड़ रहे ,
इस पार , उस पार भी !
जान जाती , है जाये ,
हम भरें हुँकार भी !
नींदें उड़ी रातों की ,
दुश्मन परेशान है !!
दिन ठंडा , फिसलन थी ,
कारवाँ बढ़ता हुआ !
रिमझिम सा मौसम औ
सूरज छिपता हुआ !
रिपुदल था घात लिये ,
कायर , बेईमान है !!
आँखों में आँसूं ना ,
अंगार हम चाहते !
रणचंडी नाच उठे ,
खप्पर ले हाथ में !
नाच उठे भैरव भी ,
जागे शमशान हैं !!
आतंकी आका सब ,
पनाह माँगने लगें !
घर के जो भेदी हैं ,
वे भी भागने लगें !
ताल ठोक ललकारो ,
ये अपना जहान है !!
घर में जो बैठे छिप ,
उनकी पहचान हो !
देशद्रोही जो जो हैं ,
उनपे संज्ञान लो !
घर में आतंक पले ,
आफत सब प्राण हैं !!
स्वरचित /रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )