फिर से
आज़ सूनी राह फिर से,
और बिखरे ख़्वाब फिर से।
वही इक चाहत अधूरी,
टीस देती याद फिर से !
एक सिसकी वो दबी-सी,
नम हुई ये आंख फिर से।
ज़ख़्म भर कर भी चुभन का,
दे रहा अहसास फिर से !
जो कभी अपना नहीं था,
बन रहा वो ख़ास फिर से !
और, मेरी बेबसी का,
है वही अंदाज़ फिर से !
दिन सुहाने ढल चुके हैं,
आ गई ये रात फिर से।
काश, इस बढ़ती तपिश में,
हो ज़रा बरसात फिर से !
©अभिषेक पाण्डेय अभि