फिर से एक नयी राह मिल गयी
फिर से एक नयी राह मिल गयी
ऐसा लग रहा कि कोई सौगात मिल गयी
अंधेरे से भरे इस दुनिया में
एक रोशनी की छोटी आस मिल गयी
जगमग सा लग रहा ये आसमान
न जाने कितनों दिनों बाद ये रात मिल गयी
थकी आँखों को नयी अभिलाषा से भरी
दुनिया रंगीन और हसीन मिल गयी
फिर से एक नयी राह मिल गयी
शब्दों की ज्वाला जलाने के लिए
को न जाने कहाँ से शंखनाद मिल गयी
थम सा जाता था मैं कठिन दोराहों पे
एक राह पकड़ चलने कि फिर से सलाह मिल गयी
बुरे -भले की कशमश में हमेशा भले
के लिए लड़ने कि चुनौती मिल गयी
बीच मझधार में फँस न कोई चाह बची थी
न पतवार का पता था न साहिल का
न जाने कितने दिनों बाद दोनों साथ मिल गयी
फिर से एक नई राह मिल गयी
एक दिन था उलझन में
देख माँ ने गोद में फिर से सुलाया
बिन कहे सारी बातें जान लाड़ लगाया
दुआएँ जो माँ ने मांगी थी मेरे लिए
लगता है आज वो कबूल हो गयी
बस माँ के चरणों से
फिर से एक नई राह मिल गयी।
(विकास श्रीवास्तव)