फिर से आयेंगे
जाना इस दुनिया से सबको, हम भी जाएंगे
काल, यार और प्यार की यादें बस छोड़ के जाएंगे
पता नहीं ये जीवन का अब, कहाँ खेल कर जाएंगे खुम्मारी का लोटा थामे अपने आप थम जाएंगे
कुछ भी कह दो कुछ भी कर दो एक दिन तो हम जाएंगे
समेट पोटली अपने कर्मों की शून्य हस्त चले जाएंगे यश जिसका वैभव बनेगा वो चिरस्थायी हो जाएंगे अंधकार की वो दुनिया में वसु प्रकाशमय कर जाएंगे
पता नहीं न आज का,कल का फिर भी शुद्ध जीयेगे हम
तमता की इस नगरी में यारों लड़कर ही जीयेगे हम
वो मानव ही मानव क्या है जो हार गया अपनों से ही खुली स्वतंत्रता आजाद घूमती ये उसके कर्मों से ही
यादों की बारात बनाकर फिर हमको तो जाना है
याद ना आए दुनिया को हम बस मेरा ये कहना है खुशबू बात स्वतंत्रता जैसी हमको फैला ही जाना है आये हैं जायेंगे फिर से आयेगे ये साबित कर जाना है
पता नहीं मंथन ये कैसा ये विचार कहां से आये
फिर भी सच है यारों आये हैं और फिर जाये…..
सद्कवि
प्रेमदास वसु सुरेखा