फिर सुबह रोना है मुझको…
फ़र्क क्या पड़ता है तुमको, फ़िर सुबह रोना है हमको ।
नींद तुम्हें आती है अक़्सर, यूँही तन्हाई में सोना है मुझको ।।
यूँ तो कभी न देखें हैं, मैंने भीगे हुए पलक तेरे ।
लेकिन तेरी यादों में हर पल रोना है मुझको ।।
बेदर्द जमाना कहता है कि झूठा तेरा प्यार था ।
दामन पर तेरे जो लगा दाग, उस दाग को धोना है मुझको ।।
गर तुझको में नापसंद था, क्यों मेरे दिल को बहलाया ।
तेरे इस धोखे को सहकर, जग में फ़िर जीना है मुझको ।।
तेरा प्यार मुबारक़ हो तुझको, “आघात” न शिकवे करता है ।
बस तेरी झलक इक पाने को, ये दिल तड़पाता है मुझको ।।
आर एस बौद्ध “आघात”
अलीगढ़