फिर संभल जाउंगी
जिंदगी को जितना समझने की कोशिश की है,
उतनी ही ज्यादा, उलझनों से भर जाती है |
जिंदगी को हर बार जीतने के लिए दांव लगाती हूँ,
वह समंदर की लहरों की तरह, छू कर निकल जाती है|
है ख्वाहिश आसमान में, बादल की तरह उड़ने की,
सरसराहट सी हवा बन कर छितरा कर चली जाती है|
जिंदगी तूं अपना खेल खेलती रह बच्चे की तरह,
मैं भी हार नहीं मानूंगी, गिर कर फिर संभल जाउंगी|