फिर रीत पुरानी याद आई
फिर रीत पुरानी याद आई
झूठे रिश्ते-नातों पर कायम
अधुनातन जग का आलम,
छल-कपट और राग-द्वेष में
संलिप्त कलियुग का मानव।
मानवता दम तोड़ रही है
देख मनुज की चाल कुटिल,
नेकी भी अब आहें भरती
घर के भेदी लोगों से मिल।
दादा-दादी बाट जोहते
गूंजे घर आंगन किलकारी,
बेटे बहुएं परदेस गए सब
क्या जानें वे पीर परायी।
बचपन की अठखेली अब
बस्ते के बोझ तले गई सिमट,
युवाओं की प्रज्ञा और उर्जा
व्हाट्स अप पर हो रही खत्म।
आडंबर ने घर-घर डेरा डाला
सच्चाई का सबने छोड़ा दामन,
दया, धर्म सिसकियां भर रहे
काम, क्रोध अब करते तांडव।
पढ़-लिखकर भी ज्ञान हुआ ना
इक्कीसवीं सदी तेरी दुहाई,
अज्ञानी ही लोग भले थे
फिर रीत पुरानी याद आई।