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25 Mar 2021 · 1 min read

फिर रहे दर बदर

फिर रहे दर बदर भावनाएं लिए।
तुम अपने लिए हम पराये लिए।
आदमी आदमी को पहचानता कहाँ
अब बड़े फिर रहे है दुवाएँ लिए।
आदमी आदमी से आदमियत लिए।
काश के अब मिले अच्छी नियत लिए।
वो हो गया है अब गैरों का रहनुमा
फिरता है ऐसी लिक्खी वसीयत लिए।।
चैन रखा कहाँ है जिंदगी में कहीं,
फिर रहे है सिर पे कितनी बलाएं लिए।
फिर रहे दर बदर भावनाएं लिए।
दे देते हैं वे अक्सर समय का हवाला।
जिसके पास धन है उसका है बोलबाला।
शाम जिंदगी की अपनों के बीच कटती कहाँ,
अनगिनत कमाई शाम को मधुशाला।।
चलते है साथ चेलों के साए लिए।
फिर रहे दर बदर भावनाएं लिए।।
-सिद्धार्थ पांडेय

Language: Hindi
Tag: गीत
4 Comments · 449 Views
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