फिर मेरा फूल ये कैसे शहीद हुआ…
मेरा फ़ूल ये कैसे शहीद हुआ,
न गया वो आज रणभेरी में,
न खाई गोली दुश्मन की,
ये कैसा ज़ुल्म शरेआम हुआ । फ़िर मेरा फ़ूल कैसे ये शहीद हुआ.
भेजा न कभी मैंने इसको,
फ़ौज-पुलिस या सैनिक बनने,
न किया तिलक इसका मैंने,
तू जा दुश्मन की छाती छलने । फ़िर मेरा फूल कैसे ये…
गर हो जाता कुर्बान अगर,
देश की ख़ातिर मेरा बेटा,
दो आँशु भी न बहे होते,
मेरा दिल भी हर्षित हो जाता । फ़िर मेरा फ़ूल कैसे ये…
माँ शहीद की कहलाती,
मेरा रोम-रोम खिल जाता,
मौत मेरे कलेजे के टुकड़े की,
हो मदमस्त सुनाती यशगाथा । फ़िर मेरा फ़ूल कैसे ये.
आज मेरा सरकार घूम रहा,
क्यूँ मस्तमगन इतना होके,
“आघात” तेरा मन क्यूँ सबक नहीं लेता,
दर्दनाक हादसे से चोंटें खाके । फिर मेरा फ़ूल कैसे..