फिर मिलेंगे।
जो बिछड़े हैं आज,
तो कल फिर मिलेंगे,
जो नज़र न आए आस-पास,
तो दूर कहीं ख़्यालों में मिलेंगे,
कभी जवाबों मे मिलेंगे,
तो कभी सवालों में मिलेंगे,
कभी सुनी-अनसुनी बातों में मिलेंगे,
तो कभी कहे-अनकहे ज़ज़्बातों में मिलेंगे,
कभी ज़हन में मिलेंगे एहसास बनकर,
तो कभी पुरानी बातों या किस्सों में मिलेंगे,
कभी मिलेंगे मौसम की बदलती बहारों में,
तो कभी यादों के ख़ूबसूरत नज़ारों में मिलेंगे,
कभी कहीं मिलेंगे दिलों में शायद ,
तो कभी लफ़्ज़ों के चलते सिलसिलों में मिलेंगे।
कवि-अंबर श्रीवास्तव