फिर भी तन्हा
रात अचानक /ख्बाब में आकर मुझे जगा
कहने लगीं तुम
याद है ये सुबह /ऐसे ही पंछी
ये दरख्त /सबके सब मायूस हैं ये
बिन तुम्हारे और /मैं भी
होठों पे चिपकाये खुशियाँ /कब तलक भरमा सकूँगी
अपने दिल को
जानती हूँ मेरे हो तुम /मैं तुम्हारी
पर नदी के/ दो किनारों की तरह
हम साथ तो हैं /उम्र भर से
फिर भी तन्हा /फिर भी तन्हा…
विजय बेशर्म 9424750038