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10 Feb 2024 · 2 min read

फिर क्यों मुझे🙇🤷 लालसा स्वर्ग की रहे?🙅🧘

मुझे जब मिला है ,
सूरज का शौर्य और धरा का रज,
कला परिवर्धन , चन्द्रवत् धीरज
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

अम्बु, अनिल और अनल,
आजीवन मिलेंगे मुझे,
मेरी आवश्यकता से भी परे
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

खेतों में फसल – सफल,
बागों में ऋतु के बहुल फल,
समतल धरा में पीने को पेय नदीधार मिले!
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

ऊंचे गिरि – वन-वृक्ष-लतायें,
औषधसम्पत् बनें, बहें पावन घटाएं ,
संतप्त धरा धर शीतबिंदु ,
मुझे निरोगी शरीर करें।
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

पावन- मंदिर , गुरुधाम गुरुद्वारा,
पथ – चत्वर, प्रस्तर कुलदेव खडे
रक्षक मित्र – मददगार मेरे,
आजीवन सहारे दें मुझे ,
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

ऊपर अंबर ऋतुवत् स्वाम्बर ,
बदलकर धूप -छांव ,शीतरस बरसे,
सिंधु की मन्द मृदुजलधार बहे।
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

जीते जगत में वैभव – अकूपार,
सौभाग्य जगे,मिले सुधि – प्रसाद,
ईश्वर प्रतिक्षण, धैर्य – शक्ति प्रदान करें
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

अहं नहीं हम – हमारा संसार।
स्वावलम्ब-अविलंब-फल – अनुकूल,
शाश्वत भास्वत् परिवार बढ़े।
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

कपट – कर्तक कृपाण, कराल करद्वय
प्रताप शक्ति का, छत्रपति पद – सा ।
झाला – सखा , समर्थ गुरु मिलें!
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

ज्ञान संतों का , मान श्रीमंतों का ,
दया – करुणा, नीति – उत्साह भरपूर,
प्रदीप्त नयन – द्वय, आनंद – मकरंद झरे।
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

देशहित वीर संग, वीरांगना भी,
करों से लिखते इतिहास – पौरुष की,
अमरता का देवत्व भरा, वरदान मिले,
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

शंकर अद्वैत – आर्य सन्देश दयाभरे ,
मूलशंकर – दंडी विरजानंद मिले,
रामकृष्णशिष्य विवेकानंद मकरंद ,
ज्ञानसरिता प्रवाहित करें,
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

श्रमिकगण मृदा पर ही हरित हीरे उगाए,
खनन कर धरा से, खनिज लाभ पाएं,
उन्नति – सुखद आयुभर, आशीष मिले,
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

यहीं जन्म – सुख है, जरा – व्याधि दु:ख भी,
यदि शोक है तो सुगीतोपदेश भी।
कर्तव्यबोधक सरस यहां हैं उपदेश भरे ।
फिर क्यों मुझे लालसा स्वर्ग की रहे?

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