फिर क्यूँ मुझे?
#दिनांक:-11/10/2023
#शीर्षक:-फिर क्यूॅ मुझे?
मेरे जन्म पर सबसे ज्यादा खुश,
तुम ही हुए थे ना पापा?
जो खिलौने मुझे चाहिए,
लाकर दिये थे ना पापा ?
स्कूल से कालेज तक ,
हमेशा साथ-साथ पढ़े हो पापा?
जब मैं सयानी हो गयी,
इसी चिंता में बिचलित हुए थे ना पापा?
मेरी सुरक्षा का भार खुद के कंधे पर,
उठाये थे ना पापा?
पर अब क्या मैं इतनी बड़ी हो गई ?
कि सद्गृहस्थी की जिम्मेदारी,
मुझे दे रहे हो पापा ।
मेरा ख्याल खुद से रखना सिखाया,
अब ख्याल कौन रखेगा पापा ?
पच्चीस सालों का घर छोड़कर,
जाने को क्यूँ कह रहे हो पापा?
दान तो और कुछ भी कर सकते हो,
अपने कलेजे का दान,
क्यूँ कर रहे हो पापा?
ना तुम खुश ना मैं खुश,
फिर क्यूँ मुझे ,
खुद से दूर कर दिये पापा ?
रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित और सर्वाधिकार सुरक्षित है।
य्रतिभा पाण्डेय “प्रति”
चेन्नई