फिर कभी करना!
(वज़्न :- 1222 1222 1222 1222)
अगर मुझसे शिकायत है, शिकायत फिर कभी करना।
नहीं फुर्सत अभी मुझको, जसारत फिर कभी करना।।
अभी दरवेश सा मुझको, भटकने की रही चाहत।
मुझे मंज़िल दिलाने की, इनायत फिर कभी करना।।
न सर अब वो रहीं साहब, तुम्हे सजदा करेंगे जो।
इसे आशिक़ बनाने की, हिमाकत फिर कभी करना।।
तु ऐसे सीख कर छोड़ी, वज़न करना मुहब्बत का।
सितम की लो अभी कीमत, किफायत फिर कभी करना।।
अकल आ ही गई उनको, नफ़ासत अब नहीं उनमे।
खलीफा बन रहें हैं वो, शरारत फिर कभी करना।।
कभी ख़्वाहिश हमारी थी, कि मैं कुछ पूछ लूं तुमसे।
सुनेंगे चंद वो किस्से, बगावत फिर कभी करना।।
वही अच्छा मिरे खातिर, भरम में ही बहकने दो।
अभी यादें सजोया हूँ, सदाक़त फिर कभी करना।।
बनो भी रहम दिल अब तो, कि मीठी आशनाई हो।
दबा लो लफ़्ज़ को लब पर, ज़लालत फिर कभी करना।।
©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित ०१/०५/२०२०)