“” फिर उठी नहीं नज़र ” !!
ग़ज़ल / गीतिका
आपसे मिली नज़र ,
फिर उठी नहीं नज़र !!
क्या कहें , सुने भला ,
कुछ नहीं मिली खबर !!
चढ़ रही खुमारियाँ ,
दिख रहा कहीं असर !!
मिन्नतें हज़ार की ,
वक़्त से यहीं ठहर !!
लाख आँधियाँ चले ,
भूलते नहीं डगर !!
आपने करी ठगी ,
मूक से वहीं प्रहर !!
रात रात हम जगे ,
हाथ है लगी सहर !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )