“फिर उठकर चलना होगा”
“फिर उठकर चलना होगा”
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तुम्हें अकेला ही चलना होगा,
हालातो से लड़ना होगा,
गिर-गिर कर संभलना होगा,
फिर उठकर चलना होगा।
स्वार्थ में उलझा है जग,
उछालते है कीचड़ पग-पग,
गिरते आंखो के अश्रु पात को,
हंस-हंस कर पीना होगा,
फिर उठकर चलना होगा।
घट-घट कलेश उबल रहा,
अपनो में द्वेष फैल रहा,
भूल सभी अवसादों को,
विधियों पर ढलना होगा,
फिर उठकर चलना होगा।
विकराल, रंज तूफ़ानों में,
आंधी रात वीरान में,
अंधियारा समेटने को,
दीपक बनकर जलना होगा,
फिर उठकर चलना होगा।
हालातो से लड़ना होगा,
फिर उठकर चलना होगा।।
वर्षा (एक काव्य संग्रह)/राकेश चौरसिया