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25 Mar 2022 · 1 min read

फिर इंसानियत का चेहरा कुचल दिया तुमने

मुहब्बतों को नफरतों मे बदल दिया तुमने
फिर इंसानियत का चेहरा कुचल दिया तुमने

हिंदू को मुसलमान से जब जब लड़ाना चाहा
होशियारी से दांव धर्म का चल दिया तुमने

जब भी आईना बन जाने को हुआ ये दिल
हर बार कोई रंग जफा का मल दिया तुमने

अब जो देने आए हो उसकी बात करो आज
हम भुला चुके हैं उसको जो कल दिया तुमने

हमने क्या पूछा था मुहब्बत मे तुमसे और
सवाल का हमारे ये क्या हल दिया तुमने

मारुफ आलम

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