फिर आ गये…
शुरू हुई सर गर्मी चुनाव की
ऋतु आ गयी मोल भाव की
सौदेबाजी चल रही जोर से
हर दल गुजरे डर के दौर से
घड़ी आ गई बड़े तनाव से
शुरू हुई सरगर्मी चुनाव की
ऋतु आ गयी मोल भाव की।
माना दल बहुमत से कम है
किन्तु कहीं कोई न गम है
न बात लेनदेन के अभाव की
शुरू हुई सर गर्मी चुनाव की
ऋतु आ गयी मोल भाव की।
जनता ही यह पद है दिलाती
अपने किए पर वो पछताती
सहती मार बदले हाव भाव की
शुरू हुई सर गर्मी चुनाव की
ऋतु आ गयी मोल भाव की।
सियासी चूल्हे की तप्त देख
हर नेता रहा अपनी रोटी सेंक
स्थिति बनी जबर्दस्त खिंचाव की
शुरू हुई सर गर्मी चुनाव की
ऋतु आ गयी मोलभाव की।
रंजना माथुर
जयपुर (राजस्थान )
मेरी स्व रचित व मौलिक रचना
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