फिर आई बरसात(बरसात)
फिर मेघाच्छन्न हुआ गगन
फिर टप-टप बूंदे आई
धरा नटी की खातिर
नभ से नव संदेशा लाई
पा जिसको खिल उठी वसुंधरा
धानी चूनर लहराई
दिल की कली प्रस्फुटित हुई
चहुँ दिस हरियाली छाई
ताल, तलैया, कूप, बावड़ी
सब में खुशी उमगाई
सृष्टि विहँस रही नव वृष्टि से
शोभा अनुपम पाई
निखर उठी कुदरत की आभा
आया चहुँ दिस नव मधुमास
धन्य धन्य हे बादल प्यारे
कण कण में मधुरिम आभास
जैसे जल बरसा मेघों ने
दूर किया कुदरत का ताप
प्रेम स्नेह सद्भावों से हम
धो दें जन-मन का संताप