फिराक गोरखपुरी
फिराक गोरखपुरी उर्फ रघुपति सहाय :
28 अगस्त 1896
“आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी हम असरों
जब भी उनको ध्यान आएगा, तुमने फ़िराक़ को देखा है”
इस शेर को उन्होंने अपने लिए लिखा। कुछ लोग आसानी से उठ कर कह दे सकते हैं कि एक आत्म मुग्ध शायर था … मगर मुझे लगता है ये खुद के आत्म विश्वास की चरम इस्थिती रही होगी। जो सच साबित हुई … सब नहीं कह पाते ऐसा …
एक मुंह फट शायर जिस ने जब जहां जो भी कहा वो शब्दों के खजाने का मोती हो गया ….
“आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में ‘फ़िराक़’
जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए ”
फिराक … पढ़ने वालों के लिए पहेली से कम नहीं।
जब वो सपाट शब्द में कहते हैं …
“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत”
तो जिंदगी के संघर्ष में रत लोगों को अचानक एक फलक मिल जाता है और इसे संघर्ष का मूल मंत्र बना लेते हैं।
वहीं जब वो कहते हैं …
“मौत का भी इलाज हो शायद
ज़िंदगी का कोई इलाज नहीं ”
तब लगता है जिंदगी ने गिले कपड़े की तरह निचोड़ कर अलगनी पर सूखने टांग दिया हो …
फिर दूसरा ही शेर पढ़ते हुए अचानक लगता है। वे एक बेफिक्र अलमस्त से इंसान हैं….
“रोने को तो ज़िंदगी पड़ी है
कुछ तेरे सितम पे मुस्कुरा लें ”
हर कदम पर एक अलग ही रंग देखने को मिलता है।
कभी तो लगता है दिल इतना खाली है कि खुद की सांसे भी शोर सुनाई पड़ती हो, जब वो लिखते हैं …
“कोई आया न आएगा लेकिन
क्या करें गर न इंतिज़ार करें ”
फिर जैसे ही दूसरे शेर पर नज़र पड़ती है लगता है … कोई तो था दिल के कमरे में अंधेरा बाटने के लिए मगर अब जुदा हुआ जाता है। ….
“मैं मुद्दतों जिया हूँ किसी दोस्त के बग़ैर
अब तुम भी साथ छोड़ने को कह रहे हो ख़ैर”
फिराक को पढ़ कर बड़ी संजीदगी से महसूस होता है, इतनी बड़ी भरी पूरी दुनियां में वो बेहद तनहा थे।
कोई ऎसा न था जो उनकी तनहाई बांटे, जो भी मिला अपने गरज से मिला … और वो उसे भी उसी रूप में स्वीकार करने को तैयार हैं। …
“किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी”
न जाने किस का इंतजार था उन्हें … किसी को आवाज़ तो देते थे मगर न वो सुनता न था और ये उसे हाल – ए – दिल समझा न पाते थे। तभी तो कहा होगा ….
“मैं हूँ दिल है तन्हाई है
तुम भी होते अच्छा होता”
ये भी लगता है कोई दिल के इतने करीब से गुज़रा कि बांकि सब धुंआ धुंआ ही रहा … और उसे खो देने भर से वो पूरी तरह खाली हो गए … जिस रिक्तता को वो जीवन भर, भर ही नहीं पाए ….
“खो दिया तुम को तो हम पूछते फिरते हैं यही
जिस की तक़दीर बिगड़ जाए वो करता क्या है”
???
~ सिद्धार्थ