फितरत
फितरत
अंतर्मन की गुफा में बैठा,
एक अजूबा “फितरत ”
नतमस्तक जिसके आगे सभी,
अदृश्य विद्यमान शक्तिशाली है फितरत।।
रंग बिरंगा खेल दिखाता ,
पूर्ण करने बेहिसाब हसरत।
कभी विवशता-कभी सफलता,
कभी-चतुराई सिखाता फितरत।।
सरपट दौड़े भागे ज़िंदगी भर,
महत्वकांक्षी बने कुचले कुदरत ।
दुनिया बदलने को आतुर सभी,
पर बदलते नही अपनी फितरत ।।
होड़ मची है चहुँ दिशा में,
दूजे को बदलने करते कसरत ।
झाँकते ताकते व्यर्थ ही बाहर ,
पर देखते नहीं खुद की फितरत ||
राम राज्य की कल्पना करते,
गुज़र गई है मुद्दत ।
ज्ञानी सभी है औरो की खातिर,
पर बदलते नही खुद की फितरत ।।
ठहरो तनिक झाॅंको अंदर ,
विराम दो बचकानी करतब।
फितरत मूल अंतरात्मा की,
चमक जागृति होगी तब ।।
सबकी होती अलग-अलग फितरत ,
पर एक सूत्र में जो बाॅंधे कुदरत ।
करुणा प्रेम दया का भाव दिल में,
हर इंसान के मन में हो यही फितरत।।
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जय हिंद जय जवान जय किसान
रचनाकार कविता वर्मा
भाटापारा
बलोदाबाजार छत्तीसगढ़