# फितरत ……
# फितरत ……
एक लड़की…
फूलों जैसी ,
रंगीली…
तितली जैसी …!
उसकी आंखें ,
बसंत का यौवन…
बातें लगती ,
निर्मल पावन…!
हंसती हुई ,
मुस्कुराती…
कभी-कभी
वो इतराती…!
कुछ ना कह के ,
नजरों ही नजरों में,
जाने क्या…..?
कह जाती …!
अनछुई सी चंद्रकिरण,
आईने की प्रतिमा…
अगाध प्रेम में फंसे,
किसी कवि की कल्पना…!
उसकी फितरत की
अदा बड़ी मासूम…
उसका चेहरा
सर्द की शबनमी…!
सारी कायनात
उसकी फितरत में…
जैसे सागर ,
गागर में समी…!
हो गया उससे
रिश्ता पलों में…
रातों को सपनों में
बसती पलकों में…!
सोचता हूं ,
क्या सोचती है…?
जब भी वो ,
मेरी ओर देखती है…!
शायद ये मेरा ,
वहम ही होगा…
क्या वो मुझसे ,
कुछ चाहती है…?
सब कुछ मैंने ,
उसमें देखा पर
नहीं जानता उसकी
फितरत क्या है…?
या फिर मैं ये कहूं ,
वो तो एक
खुद फितरत है……!
चिन्ता नेताम “मन”
डोंगरगांव(छ.ग.)