“फितरत”
बड़ा मतलबी यार निकला,
साथी मिरा ग़द्दार निकला।
हमने समझा साया है मिरा,
वो तो काला अंधकार निकला।
सोच-सोच के खुश होता था,
भ्रम ही रहा वो तो दागदार निकला।
दूर था तो पास नज़र आता था,
देखा तो धूल का गुब्बार निकला।
तूं , तूं नहीं मैं समझा था,
अक्स नहीं वो तो धुँआदार निकला।
वाह रे इंसान क्या फितरत है तिरी,
ज़ज़्बात नहीं दौलत ही मिल्कियत है,
जरा सा नफा क्या मिला,
तू तो बड़ा मक्कार निकला।
कुमार दीपक “मणि”
दिनांक 14/07/2023