फितरत
फितरत
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कैसे रोकूं कहां खत्म करूं मेरे दिल की उल्फत को
मंजूर नहीं तुझसे दूर जाना मेरी इस नादान फितरत को
बहुत झेली है जिल्लत, बहुत किस्से मशहूर हुए
मेरी बेखयाली कायम है , क्या करूं इस फितरत को ?
रोका था उसको मैंने, बहुत कुछ समझाया था
लेकिन वो न समझा , चला गया , लेकर अपनी फितरत को
बचपन के किस्से परी कथाएं, याद बहुत आती है
दुनियादारी में सब खो गया क्या कोसू अब फितरत को ?
मुझे पता है संसार गलत है , मैं भी दूध का धुला नही
लेकिन औरों पर उंगली उठाना कैसे रोकूं इस फितरत को ?
नफरत , उल्फत, मोहब्बत, शोहरत कमा ली भले मैने भी
शिद्दत मुहब्बत और कुदरत , कैसे लाऊं फिर उस फितरत को ?
वक्त के पहलवान को मिल जाती हर जगह इज्जत है
लेकिन खेल बड़े निराले ,गफलत है कुछ फितरत को
मैं रानी तू रानी , कौन डाले किस पर पानी
कौन लेगा सिर पर अपने जहमत वाली फितरत को
इंसान की किस्मत कहूं या उसकी आदतन आदत
किस तराजू में तौल सकते है आज किसी की फितरत को ?
एक कफस है , पिंजरा है , जाल है जंजाल है
कैसे छुड़ाए इस भंवर जाल में फसने वाली फितरत को ?
रचयिता
शेखर देशमुख
J-1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू -2
सेक्टर 78, नोएडा (उ प्र)