* फितरत *
डा . अरुण कुमार शास्त्री – एक अबोध बालक – अरुण अतृप्त
* फितरत *
कितनी किताबें पढ ली कितनी रवायतेंन देखी
हमसा ना कोई देखा हमसाया न कोई पाया
मिलने को मिले लाखों बातें भी हुई सबसे
मिले दिल किसी के दिल से ऐसा न कोई पाया ||
वो कह रहें हैं, हमसे, आकर के गुफ्त्गु करलो
फिर भूल जाओ सबको उनसा न होगा आया
हुआ धुआं धुआं जहाँ में, मैं जो उनके करीब आया
वो राख हो गये सब, जिसने था सितम ढाया ||
बन्दगी को अपनी सुरखाव, था जो समझा
सहरा में गुल खिलाने का उनको हुनर न आया
शौके फितर था जितना , उतना ही दिल जलाया
मिले दिल किसी के दिल से ऐसा न कोई पाया ||
बेटा अबोध समझो दुनिया है सराये फ़ानी
जिल्लत मिलेगी सबको जिसने भी दिल लगाया
मिलने को मिले लाखों बातें भी हुई सबसे
मिले दिल किसी के दिल से ऐसा न कोई पाया ||