फितरत
इम्तिहानों की फितरत हराने की है
क्या करूं, अपनी तो आदत ही जीत जाने की है ॥
उठते हैं समुन्दर में तूफान , नौका डुबाने के लिए
क्या करूं, अपनी तो आदत पार कर जाने की है ॥
जिंदगानी का सफर लम्बा और कठिन भी हैं
क्या करूं ,अपनी तो फितरत बस चलने की है ॥
ऊँचे पहाड़ों की गहरी घाटिया रास्ता रोकती तो हैं
क्या करूं , अपनी तो फितरत रास्ते बनाने की है ॥
करते हैं बयां ज़बां से गम कितने भी
क्या करूं,फितरत तो अपनी , बस मुस्कुराने की है ॥
आते हैं उफान नदियों में रोकने को
क्या करूं, अपनी तो फितरत संग बह जाने की है ॥
सैलाब और बवंडर मौत लाते हैं हरदम
क्या करूं, अपनी तो फितरत जी जाने की है।।