फितरत
ये न कहो की बस गिरगिट को ही,
रंग बदलते देखा है।
ज़माना नया है इन्सानी फितरत को भी,
बदलते देखा है।
हर फितरती अंदाज का अपना अलग खेल है,
पल पल में जो बदले ये वो इन्सानी मैल है।
दोस्ती का हाथ बढ़ाकर सामने तो प्यार जताते है,
पर सही समय पाकर पीठ में खंजर घुपाते है।
दिल हो नादान तो इस झूठी फितरती अंदाज का,
पता नहीं चलता।
ठोकरें खाकर गिरने के बाद,
आंखों का धूल छंटता।
बदलते वक्त के तराने में,
ख़ुद को भी ज़रा दुरुस्त कर लेना;
न हो इस हालात का शिकार,
तुम भी अपनी फितरत को बदल लेना।