फितरत
फितरत-ए-इंसान
कुछ ऐसी है कि
बदलती नहीं ;
बदल जाते हैं हालात
पर , हसरतें दिल की
मिटती नहीं ;
मन पंछी बन
दर-दर भटकता ,
हसीन स्वप्नों का
संसार रचता ;
ख्याल-ए-जहान में
बीत जाती है उमरिया –
पर , आदत पुरानी
छूटती नहीं ;
भवसागर में –
हिचकोले खाती जीवन नैया –
हौले-हौले
डूब जाती है ;
पर , प्यास इतनी गहरी है –
कि बुझती नहीं ।