“फितरत”
नकाब फ़ितरत का उठाओ तो,
चेहरे में शियासत दिखती है।
छल कपट के धन दौलत, फ़ितरत भरी सोहरत ।
सब एक न एक दिन, बेनकाब हो जाती है।
बरकत नही होता इंसान के दोगलेपन में,
हमारी आस्था से तुच्छ हरकत करते हैं।
इंसानियत ही इंसान को आगे बढ़ाती है,
मर्यादा में जो रहते हैं फ़ितरत से घिन आती है।
इंतजार मत करना जिनमे फ़ितरत हावी है,
एतबार मत करना जिनके मन मे आरी है।
फ़ितरत कब हमला कर दे ,
जिनके हाथ कुल्हाड़ी है।
इंसान जो ना बन सका ,
वो इंसान के खून का प्यासा है।
ऊपर से प्रेम दिखाता है,
देता उसको झांसा है।
ऐसे इंसानो से दूर रहो,
जो फ़ितरत के कारोबार किये।
कितनो के विश्वास को लूटे,
कितनो के घर को वो लूटे।
हो जाओ होशियार यारों,
फ़ितरत की चोरबाजारी में।
फ़ितरत लिए दिल मे प्रेम करते हैं ,
दूर उनसे हो जाओ तो मलाल करते हैं।
अरे शर्म नही आती फ़ितरत है दिल मे,
तो मलाल किस बात की ।
अब तुझसे क्या ही पूछें,
तेरी इस फ़ितरत पर क्या सवाल करें।
इंसानियत और फ़ितरत की कभी नही बनती,
जिनकी बनती हैं तो जिंदगी आगे नही बढ़ती।
लेखिका:- एकता श्रीवास्तव।
प्रयागराज✍️