** फितरत **
इंसान की भी फितरत अजीब है
वक्त पर खुद ही बदल सा जाता है
जब खूब पिता बनता है समय पर
तो सब कुछ औलाद को दे जाता है !!
आशा रखता है भरपूर अपने पिता से
न मिलने पर मायूस सा हो जाता है
न जाने क्यूं पिता की दौलत पर
हर वक्त वह नजर गड़ाता है !!
शायद ही कोई पुत्र ऐसा बचा होगा
जिसने इस तरफ ध्यान नही दिया होगा
उसने इज्जत से भरकर अपने पिता को
अपने हाथों से सब कुछ दे दिया होगा !!
कर्म करो, पर लालच मत करो
जो मिला उस में तुम सब्र करो
माँ बाप का ले लो आशीर्वाद सदा
पर बुरी फितरत को तुम बदल लो
अपने आप सब कुछ मिल जाएगा !!
जब तक कहेंगे समाज के लोग
तब तक फितरत को अपनी सुधार लो
कौन कितना समझायेगा आकर तुम्हे
तब तक भव से नैय्या खुद पार करो !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ