फितरत
रही अच्छी बुरी दोनों,यहाँ इंसान की फितरत।
मगर दम तोड़ देती है,हृदय में पल रही हसरत।
मुनाफा देखकर बनते,कई रिश्तें जमाने में,
अजब अंदाज़ लोगों का, जहाँ मतलब वहीं शिरकत।
यहाँ इंसानियत बिकने,लगी है चंद पैसों में,
पड़ा है पूण्य कोने में,लगे अब पाप में लज्जत।
सदा कमज़ोर पर ताकत,मनुज क्यों आजमाता है,
तमाशा है बुलंदी भी,बड़ी ओछी करें हरकत।
न जाने क्यों मुकद्दर से,तुझे इतनी शिकायत है,
करम जैसा करेगा जो,उसे वैसी मिले बरकत।
जरूरत ही कराती है,सदा सजदा झुकाकर सर,
नहीं तो कौन करता है,यहाँ पर बेवजह कसरत।
मुकम्मल कामयाबी हो, रज़ा रब की रहे जिनपर,
खुशी होती उसी घर में,खुदा की हो जहाँ रहमत।
जगा पुरुषार्थ को मानव,हृदय में जोश को भर लो,
विजेता वो बनेगा जो,कभी करता नहीं गफलत।
-लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली