फितरत
ज़माने की फितरत देख
होती है हैरत अदिति
ये कोई कसर नहीं छोड़ते
किसी को गिराने में
दिल ओ दिमाग से फिर
आहिस्ता-२ हो जाते है दूर
इंसानी जज़्बात जब इनके
खोखले होने लग जाते है
गुजरते वक्त के साथ
इनकी चाहत बदल जाती है
रंग-ढंग बदल जाते है
और बदल जाते है मिजाज
शर्त बाजी पर ये लगाते है
सबको आजमाते है
अपने मजे के लिए फिर
दिल किसी का तोड़ देते है
सबसे हैसियत पूछते है
जख्मों पर नमक छिड़कते है
धन-दौलत की हवस में
रिश्तों को बर्बाद करते है
पहले तो गले लगाते है
फिर दुत्कार देते है
डंसने का हुनर जनाब
ये बखूबी जानते है
विश्वास को लूटते है
और जज़्बातों से खेलते है
सियासती चोला पहन
अपनों पे ये दांव लगाते है
छोड़ कर के फितरत
ये बदल देते है हर अंदाज़
इसलिए…,
मोहब्बत पर मेरे खुदा
मुझे अब भरोसा नहीं होता
इंसान के झूठे साथ में
मुझे अब ऐतबार नहीं होता.
– सुमन मीना (अदिति)