फितरत नहीं बदलती है
अपनी -अपनी फितरत है, कोई हँसता है, कोई रोता है
विष -वमन करता है, कोई घड़ियाली आंसू बहाता है l
360 बार घूमती सेकंड की सुई, 60बार मिनट की सुई
1से 2 पर आती है घंटे की सुई, देखते हैं घड़ी हर कोई
लगन से लगा है हर वक्त, मगन है जो अपने कर्मों में
देर नहीं है उसे सफल होने में, अपनी मंजिल पाने में l
न थकता है, न रुकता है, विभिन्न बाधाओं के आने पर
तत्पर है, तन्मय है, लेते हैं सांस वे,काम पूरा करने पर l
किसान की शान निराली है, मिट्टी से सोना उगाने में
दिन -रात ब्यस्त हैं वे, खेत- खलिहानोंमें,अन्न लाने में l
वैज्ञानिक अहर्नीश लगे हैं अनुसन्धानों में, खोजों में
चंद्रयान -2 के बाद जी -जान से, चंद्रयान -3 भेजनें में l
आदमी अपना रूप बदलता है, अपना चोला बदलता है
आत्मा तो वही है, उसका तो कुछ भी नहीं बदलता है l
मुँह मे राम, बगल में छुरी, सत्य है यह कबीर ज़माने से
बाज आते नहीं बदमिजाज,मीठे बोलकर विष देने से l
बांहों मे तो भर न सकी, यादों में रखना हर वक्त मुझे
पहला प्यार था, हूँ, रहूँगा, मुड़कर न भी देखो मुझे l
कब कहा था मैंने कि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ
जुबां जब चुप होता है, ऑंखें ही तो बयान करता है l
सुनों, न सुनों, चाहे मेरी बातों का अनसुनी ही कर दो
ऐसा न सोंचा है, न सोचूंगा कभी, भुला ही क्यों न दो l
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@रचना – घनश्याम पोद्दार
मुंगेर