फितरत जग एक आईना
फितरत जग एक आईना
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फितरत का जन-जन में बास
बनती जीव जगत की आस
मन मानस के दिल मंदिर में
उषा निशा मे विचरण करता
चलता व चलाता जग फितरत
विविध मनों के भावो में रह कर
भाव विभोर करता यह फितरत
जनवाणी का आधार है फितरत
जब दहाड़ मारता है फितरत तब
दुश्मन घबरा घुटने टेक देता है
ऋषि मुनि सन्यासी औघड़ बाबा
ब्रह्मचारी योगी कर्मवीर हठयोगी
कर्महीन है अपनी ही फितरत से
गुरु शिष्य नेताअभिनेत भी जग
प्राणों में नव उमंग उत्साह देकर
दशा दिशा निर्देशन से नव देश
भारत माता का वीर सपूत को
दिल दिमाग मे बैठ फितरत ही
मान सम्मान अभिमान दिला जग
में एक आइना छोड़ जाता
जन जन के मन का ये फितरत
फितरत वेग तीव्र प्रकाश पुंज से
जहां जाता ना रवि वहां फितरत
से ही बन पहुंच जाता मन कवि
निराकार प्रकार सहित कल्पना
आशातीत चंचल मन मौजी एक
फौजी ज्ञानी अभिमानी घमण्डी
करुणा प्रेम प्यार घृणा अवहेलना
कर्मयोग से सिंहासन पर पहुॅचा
मान सम्मान दिलाता है फितरत
छीन सिंहासन जनता बीच भी
अपमानित कर देता ये फितरत
पहचान जन गण मन तन के
फितरत जो कर्महीन से कर्मवीर
बना जगत को एकआईना दिखा
राहगीर का सुगम राह बना कर
सुहाना सफ़र देता ये फितरत ॥
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तारकेश्वर प्रसाद तरूण