फितरत के रंग
फितरत के हैं रंग कई,
कुछ गाढ़े कुछ फीके।
ये तो साथ जनम से है,
इसको कोई न सीखे।
भीतर मन के घुसी हुई,
फितरत की ये काया।
कोई समझ न पाया है,
फितरत की ये माया।
चाह कर भी बदल न पाए,
फितरत का चोगा जो पहना।
फितरत तेरी आँख का आंसू,
फितरत ही तेरा गहना।
कोई सत्य अहिंसा का पुजारी,
कोई छेड़ता हर बात पे जंग।
कोई दोगला समझ न आये,
फितरत के हैं कैसे रंग।
युधिष्ठिर की फितरत थी अलग,
अलग फितरत का था शकुनी।
दुर्योधन का नाम ही काफी,
था कर्ण फितरत का धनी।
किसी के दिल में प्यार है बसता,
किसी के दिल में नफरत।
हर कोई एक अनोखा है,
सबकी अपनी अपनी फितरत।