फितरत की कहानी
किसी की फितरत की तो
बस घूम फिर कर
एक छोटी सी यह कहानी है कि
कोई फूल कभी कांटा नहीं हो सकता और
कोई कांटा कभी फूल नहीं हो सकता
जिस किसी की शिराओं में होता है
अमृत का प्रवाह
वह आजीवन बिना अपना
आकार प्रकार खोये
प्रारम्भ से जैसे बहता है
अंत तक वैसे ही बहता रहता है
जो होता है विषैला
जैसे कोई विषैला सर्प या
मनुष्य
उससे लाख अच्छाई कर लो
सर्प को अपने बच्चे की तरह पाल लो
उसे दूध पिला लो लेकिन
वह अपने डसने की कभी प्रकृति
नहीं त्याग सकता
एक उत्तर है
दूसरा दक्षिण
तीसरा पूरब
चौथा पश्चिम
चारों दिशाओं की
अलग-अलग धारायें हैं
कहानियां हैं
रंग हैं
रूप हैं
अस्तित्व हैं
प्रकृति हैं
कोई दो
अब चाहे वह जुड़वां ही क्यों न हों
एक जैसे स्वभाव के नहीं हो सकते
कई बार इस भिन्नता में ही तो
जीने का तत्व और रस छुपा
होता है
सब एक सा हो जायेगा तो
ऊब पैदा करेगा
उदासीनता
नीरसता छा जायेगी चहुं ओर
एक उपवन में
कहने को तो फूल और कांटे
साथ रहते हैं लेकिन
क्या यह प्रकृति का नियम व्यक्तियों पर
लागू हो सकता है
हर कोई चाहता है कि
उसको कोई दूसरा उसके स्वभाव से
मिलता जुलता ही मिले
प्रकृति से लेकिन एक पाठ तो हम
अवश्य सीख सकते हैं कि
न जाने कितनी भिन्नताओं के बावजूद
प्रकृति के सारे तत्व एक साथ मिलजुलकर
रहते हैं
आपस में एक दूसरे से नहीं
झगड़ते
एक दूसरे को अपमानित नहीं
करते
एक दूसरे पर कटाक्ष नहीं करते
अपनी अपनी प्रकृति को
लिए
एक बहुत ही गर्व के साथ
अपने पर ही ध्यान केन्द्रित
करते हुए
अपने अपने कार्यों को सम्पादित
करने में लगे रहते हैं
आपस में उनके कोई प्रतिस्पर्धा भी
नहीं है
अपने अपने दायित्वों का लगता है
जैसे सब निर्वाह कर रहे हों
सूरज रोज सुबह
उदय होकर चारों दिशाओं में
अपना प्रकाश फैलाता है
कहने को उसका स्वभाव गर्म है
चांद रात्रि होते ही
आकाश में दिखाई देने लगता है और
सबको शीतलता की अनुभूति प्रदान करता है
देखा जाए तो स्वभाव से वह
शर्मिला है
हर किसी का स्वभाव दूसरे से भिन्न है लेकिन
ऐसा होने से किसी में टकराव की
स्थिति उत्पन्न नहीं होती
एक दूसरे के प्रति हर किसी में
आदर का भाव है
समानता है लेकिन
बस एक यह पढ़ा लिखा
हमारा सभ्य समाज और
उसमें रहते लोग हैं जो
जानवरों जैसा ही व्यवहार
करते हैं
कई बार तो
अच्छी से अच्छी अपनी प्रकृति को भी
ताक पर रखकर
एक दूसरे से भिड़ते हैं
लड़ते झगड़ते हैं
बेकार की बहस करते हैं
इनमें से अधिकतर की तो
प्रकृति को समझना ही कठिन होता है
यह पल पल गिरगिट की तरह अपने रंग बदलते हैं
और अजीबोगरीब व्यवहार
करते रहते हैं
कई बार तो जीवन के सारे अनुभव
नाकाम हो जाते हैं
जब किसी को प्रकृति को आप
अच्छा समझ रहे होते हैं
और जब उसके असली रंग
उजागर होते हैं तो
उसका एक बहुत घिनौना और
कुरूप रूप सामने निकल कर आता है
यह मनुष्य नाम का प्राणी
बहुत जटिल है
यह अपना व्यवहार ही नहीं
प्रकृति के भी कई रंग
जैसे समय की मांग हो
वैसे प्रस्तुत करने में सक्षम
होता है।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001