फितरत…………….एक आदत
सच तो इंसान की फितरत बदलती रहती हैं बस हम सभी जीवन के सच में हम सभी एक दूसरे के लिए जीवन में कुछ न कुछ सोचते रहती हैं और फितरत ही इंसान की ऐसी होती है कि वह समय के अनुसार बदलजाती है बस यही फितरत आदत या चालबाजी या चालाकी यही हम सब मानव के संस्कारों के अनुसार आती है और फितरत एक परिवारिक संस्कार भी होता है बहुत से बड़े बुजुर्गों ने कहा था हम सभी को याद हो तो कि परिवार और संस्कार बहुत जरूरी होती हैं इसीलिए हम सभी हमारे बड़े बुजुर्ग बहुत जल्दी किसी की चालाकी फितरत जान जाते थे। आज एक कहानी फितरत ऐसे ही एक आधुनिक समाज के साथ जुड़ी है
कविता एक बहुत अच्छे परिवार की समझदार लड़की है और वह स्नातक कक्षा में पढ़ाई कर रही है और और लड़की हो या लड़का सबकी अपनी अपनी आदत फितरत होती है कविता की भी एक आदत या फितरत है जो मन में निश्चय कर ले वह कर कर छोड़ती है आधुनिक समाज की कविता अच्छे डीलडोल और रंग रूप की सुंदर 20 वर्षीय नवयुवती है। और कविता का जुनून अपनी पढ़ाई की बात विधिक की पढ़ाई में करने की है और उसे आधुनिक समाज के संस्कारों से कोई लगाव नहीं है वही उसी की स्कूल कॉलेज में एक नवीन नाम का लड़का पढ़ता है वह स्कूल से पहले और स्कूल की बात एक प्रेस की दुकान चलाता है और सभी लोगों के कपड़े प्रेस करके उनके घर पर जाता है क्योंकि नवीन एक अनाथ और बेसहारा लड़का है कविता की मुलाकात नवीन से होती है और नवीन और कविता एक अच्छे दोस्त बन जाते हैं नवीन कविता के परिवार के कपड़ों को भी प्रेस करके उसके घर लेकर आता है नवीन को कविता की मां बहुत पसंद करती है और वह कहती है बेटा तुम अपना काम क्यों नहीं बदल देते नवीन कहता है की और वह मा जी काम बदलने के लिए पैसा चाहिए मेरे पास नहीं है।
एक दिन कविता घर पर अकेली होती है और नवीन प्रेस के कपड़े देने घर आता है बस कविता नवीन से पूछ बैठी है नवीन तुम्हारा जीवन में क्या उद्देश्य है नवीन कहता है ना मेरे माता-पिता ना मेरा कोई सहारा ऐसे व्यक्ति का जीवन में क्या उद्देश हो सकता है आप ही बताएं क्या मुझसे कोई रिश्ता बनाएगा नहीं क्योंकि मैं एक अनाथ और बेसहारा छोटे से काम का करने वाला हूं अब आप ही बताइए। कविता की फितरत या तो आदत वह नवीन से कह देती है कि तुम मुझसे शादी करोगे नवीन इस बात को सुनकर कविता को देखता रहता है और कहता है आप निर्णय सोच समझ कर ले तब कविता कहती है मैंने निर्णय सोच समझ कर ही लिया है और इतनी में बाजार से कविता की मां घर आ जाती है और दोनों की बातों को वह सुन लेती है। कविता की मां कविता की फितरत को जानती है कि वह कैसी सोच रखती है तब मां नवीन से कहती है बैठो बेटा और कविता को कमरे में ले जाती है कविता से कहती है तुम नवीन के साथ यह कौन सा खेल खेल रही हो कविता कहती है मां आज के संस्कारों को मैं नहीं समझती और ना ही मैं किसी एक के साथ जीवन बीता सकती हूं तब कविता की मां कविता से कहती है तभी तो मैं नवीन तेरे बारे में कुछ नहीं बता रही हूं सोच उस नवीन का भविष्य बिगाड़ कर क्या मिलेगा तुझे तब कविता कहती है मां मेरी तो फितरत आदत ऐसी है क्योंकि जीवन में मुझे भी तो इस समाज ने नहीं बख्शा मेरे साथ जो घटना बचपन में हुई थी वह मुझे आज भी याद है कविता की मां कहती है बेटा वह घटना थी उसका नवीन से क्या मतलब है कविता कहती है यह पुरुष जाति ऐसी है पुरुष की फितरत कब बदल जाए नहीं कहा जा सकता तब कविता की मां कविता से कहती है बेटी तुम भी तो यही कर रही हो तब कविता क्या थी तो मैं इसमें बुराई क्या है जो मेरे साथ भी था मैं भी तो देखूं दूसरों के साथ बिकता है तो कैसे लगता है तक अभी तक मां कहती है तुम्हारी मर्जी और चाय लेकर नवीन के पास चली जाती है और नवीन चाय पी कर चलने लगता है तब इनकी मां कहती है बेटा कविता की बात कब और करना ठीक है मामा जी आप भी कह रही हैं तो मुझे कोई एतराज नहीं है और कविता नवीन से आर्य समाज विधि से विवाह कर लेती है और किसी को इस बात की भनक नहीं लगने देती है। और जब वह नवीन की बच्चे की मां बन जाती है तब नवीन से तलाक ले लेती है नवीन इस बात को समझ नहीं पाता है और वह बहुत विनती करता है यह गलत है यह गलत है हमारा परिवार बन गया है अब तुम क्या कर रही हो कविता मुझसे क्या गलती हुई है तब कहती है कविता मुझे पुरुष समाज से बचपन में आज तक ऐसे ही धोखे मिले हैं अब मैं भी देखना चाहती हूं कि एक पुरुष भी धोखा खाकर कैसा महसूस करता है तब नवीन कहता है तुम दूसरों का दोष मेरे साथ क्यों निकाल रही हो तब कविता कहती है पुरुष की फितरत ही कुछ ऐसी होती है तो हम महिलाएं भी पुरुष की फितरत की तरह क्यों ना बने ऐसा सुनकर नवीन अवाक रह जाता है और वह कविता से पुनः विनती करता है यह गलत है सभी पुरुष और सभी नारी एक जैसी नहीं होती किसी के साथ कुछ घटना हो जाती है तो उस घटना का सजा सभी के साथ ऐसा तो नहीं करना चाहिए। कविता नहीं मानती है और तलाक के पेपर साइन करके नवीन क्यों दे देती है और कह देती है तुम अभी इसी वक्त मेरे घर से निकल जाओ नवीन मन मन मैं कहता है बाहरी नारी तेरी फितरत पता नहीं कब क्या करने की ठान लेती है। और नवीन बुझे टूटे मन से कविता के घर के घर से आंखों में आंसू लेता हुआ निकलता है और मन ही मन नारी की फितरत के बारे में सोचता हुआ वही अपनी प्रेस की दुकान पर पहुंच जाता है
फितरत कहानी का किसी की जीवन से कोई लेना देना नहीं है यह कल्पना मात्र लेखक की सोच है परंतु किसी के जीवन और संस्कार से कहानी अगर मेल खाती है तो यह इत्तेफाक है और पाठक गण कहानी को कहानी की तरह मनोरंजन के रूप में पढ़ें और अपनी राय दें धन्यवाद