फिजा फिर से अब शबनमी आ गई है।
ग़ज़ल
122……122……122…..122
फिजा फिर से अब शबनमी आ गई है।
तेरी आंख में क्यों नमी आ गई है।
नहीं हार का डर रहा है मुझे अब,
मेरी दांव पर जिंदगी आ गई है।
लुटे या बचे कोई बेटी की इज्जत,
कि लोगों में अब बुज़दिली आ गई है।
बदल तुम गये हो या मैं ये समझ लूं,
मेरे प्यार में ही कमी आ गई है।
जो हैं पेट भरते हमारा तुम्हारा,
उन्हें खाने की बेबसी आ गई है।
शरारत भरी याद तेरी जो आई,
मुझे रोते रोते हँसी आ गई है।
उदासी को छोड़ो हँसो मुस्कुराओ,
कि प्रेमी तेरी प्रेयसी आ गई है।
…….✍️प्रेमी