फार्मूला
पहली बात तो
उसे पैदा होने का हक न था
आ भी गया दुनिया में तो
जरूरत क्या थी जीने की
जिन्दगी को घूँट घूँट
घुट-घुट कर पीने की!
लेकिन उसने आदत विकसित की
पीने की
घुट-घुट कर ही सही मगर
जीने की
पर समाज के ठेकेदारों को
स्वयंभू पहरेदारों को
यह भी स्वीकार न था
उसे जीने तक का अधिकार न था!!
वह लड़ता रहा,
जिन्दगी से, खुद से, समाज से
पिटता रहा, गिरता रहा
फिर उठता रहा, संभलता रहा
जिन्दगी के हिसाब से
स्वयं को बदलता रहा
पर जिन्दगी जीत गई, वो हार गया
जीने का सारा श्रम बेकार गया
कभी भूख, कभी बिमारी ने
कभी दुख, कभी लाचारी ने
तो कभी समाज की दुश्वारी ने
हर लिया जोश उसका
गरीब होना ही सिद्ध हुआ
सबसे बड़ा दोष उसका!!
जिन्दगी खड़ी थी खाट के करीब ही
गरीबी हटी नहीं, हट गया गरीब ही
साथ ही मिल गया फार्मूला नेक एक
गरीब को मिटाकर गरीबी मिटाने का
क्यों न बसाया जाए
गरीबों का शहर एक
उस पर बरसाया जाए
परमाणु बम का कहर एक
फिर एक पल में मिट जाएगी गरीबी
और खत्म होंगे गरीब भी
चमक उठेगा समाज व देश
और साथ में
स्वयंभू ठेकेदारों का नसीब भी
क्योंकि यह जो शिवरतन की
गरीबी है, आह है
उनकी दृष्टि में गुनाह है
उसने जन्म लेकर ही अपराध किया है
देश व समाज का वक्त भी बर्बाद किया है!!