फार्मूला
फार्मूला
“200 करोड़ की लागत से बनने वाले फिल्म के बजट में कलाकारों के लिए 25, सेट के लिए 25, डायरेक्टर के लिए 05, राइटर के लिए 30 और अन्य खर्चों के लिए 15 प्रतिशत। ये क्या है सर ? आपकी तबीयत तो ठीक है न ?” डायरेक्टर ने पूछा।
“एकदम दुरुस्त है। क्यों पूछ रहे हो ऐसे ?” फायनेंसर ने कहा।
“सर जी, अभी तक किसी भी फिल्म के लिए राइटर को शायद ही एक प्रतिशत राशि मिला हो और आप उसे 30 प्रतिशत देने जा रहे हैं ?”
“देखो बंधुओं, काम करने का मेरा अपना अलग ही स्टाइल है। फिल्म सीता, उर्मिला, मंदोदरी, सावित्री या लक्ष्मीबाई जैसे किसी ऐतिहासिक किरदार पर आधारित होगा। पर ध्यान रहे किरदार हिंदू धर्म से ही संबंधित हो, वरना वह लांच ही नहीं हो सकेगा। इस फिल्म के लेखक एक या दो नहीं, बल्कि सैकड़ों लोग होंगे। फिल्म के वास्तविक लेखक को एक प्रतिशत राशि ही दी जाएगी। बाकी 29 प्रतिशत देश-विदेश के नामी गिरामी लेखकों और पत्रकारों को दी जाएगी, जो फिल्म के लांच होने के बहुत पहले ही उल्टी-सीधी बातें लिख कर उसका इतना प्रचार-प्रसार कर देंगे, कि वह लांचिंग के पहले हफ्ते ही हजार करोड़ रुपए का बिजनेस कर ले।”
“वाह ! मानना पड़ेगा सर जी आपके दिमाग को। क्या दूर की सोच रखते हैं।”
“तो ठीक है फिर लेखक महोदय आप अपने काम पर। और आप सभी लोग अपने-अपने परिचित लेखकों और पत्रकारों को इस फिल्म के प्रचार-प्रसार के लिए कहते रहेंगे। ठीक है। एनी डाउट ?” फायनेंसर ने कहा।
“नो सर।” सबने एक स्वर में कहा।
“ठीक है फिर अगले हफ्ते इसी दिन इसी समय इसी जगह मिलते हैं। तब तक हमारे लेखक महोदय किरदार और स्टोरी की मुख्य बातें तय कर लेंगे।” फायनेंसर ने कहा।
“जी सर जी। हो जाएगा।” लेखक महोदय ने कहा।
“ठीक है। अब आप सभी जा सकते हैं।”
फायनेंसर ने मीटिंग समाप्ति की घोषणा कर दी।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़