फायदे चाहते हो
खुद के जाने बिन,
तथाकथित भगवान की खोज संभव नहीं है, मन के अध्ययन के बाद,
उसकी प्रकृति/प्रवृत्ति आपकी मदद करेगी,
जिनका वजूद है ही नहीं,
उसके लिए लडाई लडना.
एकदम बेईमानी होगी.
आस्था किससे किसकी ?
मालूम ही न हो,
विश्वास भ्रम का कारक बनेगा.
आपकी आत्म-संतुष्टि डिगमिगाती रहेगी
आपको बेचैन रखेंगी !
और आप अंदर से टूट जायेंगे.
हमेशा सौदा नुकसानदेह साबित होगा.
ये बात तो भगवान के विषय में आधारभूत हैं.
.
ठीक वैसा ही महान् दार्शनिक महात्मा बुद्ध एक महान् चिकित्सक बतौर लोगों ने उनके साथ किया.
इसी श्रेणी में बाबा साहब भीमराव रामजी अंबेडकर जैसे उच्च कोटि के दार्शनिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, विज्ञान प्रोद्योगिकी, मजदूर यानी श्रम व्यवस्था को नई दिशा देने वाले के साथ हुआ.
चंद लोगों ने अपने मतलब खातिर महिमामंडन करके बींध दिया.
इन महात्माओं को संकुचित करने में लगभग 29लाख बिखरे हुए संगठनों ने पूरा कर दिया,
संगठन और संघ में फर्क है.
संघ बन नहीं पाया,
संगठन अपने अपने हितों/राजनीति/पद-प्रतिष्ठा के लिए लड़ते रहे.
नतीजे आपके सामने हैं.
.
हम पाली और उसमें लिखित रूप धारण करने में अनभिज्ञ रहे.
बनना था समण.
वमण को समझना था,
और कर लिया सब गुड़ सतरह शेर