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30 Aug 2021 · 1 min read

फाग और श्रृंगार

अप्सरा सी सजी है सुन्दरी
कर सोलह श्रृंगार है खडी
देह को वर्ण है गौर
बड़ी लुभावनी सी लगी
गले में इन्द्रधनुषी माला सजी
देखे बाट प्रिय की

महीना है फाग का
क्यूँ न खेलूँ फिर फाग
कर रही हूँ मैं इन्तजार
खेलूँ मैं प्रिय के साथ
आए याद खेली होली
रंग गुलाल पुराने न पड़े

पडी जो पिचकारी की फुहारें
श्रृंगार मेरा दमक उठा
तर -तर हुई ऐसी हुई
प्रेम के रंग में
सुधि -बुधि खो बैठी मै
चार चाँद लगाये श्रृंगार में
जब फाग पिया के साथ आये
दूर हो जायें थकान
हिय को मेरे फाग भाए

Language: Hindi
79 Likes · 1 Comment · 478 Views
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