फागुन में…..
फागुन में सखी, फागुन में।
गोरी के मुख भए लाल, फागुन में।।
चढ़त फागुन मोरे मन बौराए
हियरा में आसरा के दीप जलाए
पुरन होई मन के मलाल, फागुन में।
फागुन में सखी, फागुन में।।
धरत पांव मोरा पायल खनके
पिया मिलन से दिल मोरा धड़के
होई मुखड़ा मोर गुलाल, फागुन में।
फागुन में सखी, फागुन में।।
कोयल विरह के गीत सुनाए
पलाश कुसुम से वसुधा सुहाए
मन भाव हुए मधुकाल, फागुन में।
फागुन में सखी, फागुन में।।
चाहत के रंग से शब्द बनाए
स्नेह पगे टेसु से सेज सजाए
प्रीत से करुँगी निहाल, फागुन में।
फागुन में सखी, फागुन में।।
अंग – अंग बहु रंग रचाईब
खेलि – खेल में रैन जगाईब
मैं गाउंगी मेघ मल्हार, फागुन में।
फागुन में सखी, फागुन में।।
होली में पिया के रंग लगाईब
तन के साथ मन के भींगाईब
पुरा होई हिया के आस, फागुन में।
फागुन में सखी, फागुन में।।
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