फागुनी दोहे
फागुनी दोहे
फागुन में खुलने लगे,उलझे मन के तार।
गोरी घूँघट से करे,मीठे- मीठे वार।।
कलियां भौरों पर पढ़े,सम्मोहन के मंत्र।
भोजपत्र पर गंध से,लिखे मोहनी यंत्र।।
हुई विदाई शिशिर की,आया हँसता फाग।
लगी सुलगने देह में, छिपी नेह की आग।।
मीलों तक फैला हुआ, सरसों का सैलाब।
मन अपना वश में नहीं, अमराई बेताब।।
आसमान पर भाव है,और हाथ है तंग।
चेहरे की रंगत उङी,कैसे खेलें रंग।।
लाल गुलाबी बैंगनी, रंगो भरी फुहार।
होली के रंग में रंगा,इन्द्रधनुष सा संसार।।
मौलिक
आभा सिंह
लखनऊ उत्तर प्रदेश